काल पुरुष कुंडली का धन भाव क्यों है स्थिर, जबकि लक्ष्मी हैं चंचला
काल पुरुष कुंडली का धन भाव क्यों है स्थिर, जबकि लक्ष्मी हैं चंचला।
लेखक-प.नरेश कुमार शर्मा
वृष राशि, धन भाव और चंचला लक्ष्मी
ज्योतिष में कालपुरुष की कुंडली का द्वितीय भाव धन, वाणी, कुटुम्ब और संग्रहणीय संपत्ति का कारक माना गया है। इस द्वितीय भाव में वृष राशि स्थित है, जो स्वभाव से स्थिर राशि कही जाती है।
स्थिर राशि का अर्थ है—धन और संसाधन जीवन में स्थायित्व प्रदान करें, परिवार का पोषण करें और सुरक्षा का आधार बनें।
दूसरी ओर, शास्त्रों में महालक्ष्मी को चंचला कहा गया है।
> “चंचला हि जगन्माता विष्णुपत्नी रमा स्वयं।”
(पद्मपुराण)
अर्थात् – जगत की माता, भगवान विष्णु की अर्धांगिनी लक्ष्मी स्वयं चंचला कही गई हैं।
इसका अभिप्राय यह है कि धन का स्वभाव कभी स्थिर नहीं रहता। धन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक, एक स्थान से दूसरे स्थान तक निरंतर प्रवाहित होता रहता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि जब धन भाव स्थिर है तो लक्ष्मी को चंचला क्यों कहा गया?
इसका गूढ़ रहस्य यही है –
स्थिर वृष राशि हमें यह शिक्षा देती है कि धन का संचय और संरक्षण होना चाहिए।
जबकि लक्ष्मी का चंचल स्वरूप हमें स्मरण कराता है कि धन केवल संग्रह करने के लिए नहीं, बल्कि सही दिशा में प्रवाहित करने के लिए है।
यदि धन को धर्म, दान, निवेश और परिवार की स्थिरता में लगाया जाए तो लक्ष्मी स्थिर होकर सुख देती है।
परंतु यदि धन का दुरुपयोग हुआ, या उसे केवल संग्रह कर ठहराने का प्रयास किया गया, तो वह किसी न किसी मार्ग से हाथ से फिसल जाएगी।
निष्कर्ष
वृष राशि धन के स्थिर आधार का प्रतीक है और लक्ष्मी का चंचल स्वभाव हमें धन के प्रवाह की याद दिलाता है।
यही संतुलन जीवन में समृद्धि और स्थायित्व दोनों लाता है।