त्रिपुरारी पूर्णिमा / तुलसी पूर्णिमा : शिव–तत्व को आत्मसात करने का दिव्य क्षण
ज्योतिषीय रहस्य और आध्यात्मिक महत्व
कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का संहार कर देवों को भयमुक्त किया। यही दिन तुलसी विवाह का भी होता है, जहाँ विष्णु–तत्व और प्रकृति–तत्व (तुलसी) का divine union सम्पन्न होता है। इसलिए यह पूर्णिमा शिव और विष्णु—दोनों तत्त्वों की ऊर्जाओं का संगम है।
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? ज्योतिषीय रहस्य
कार्तिक पूर्णिमा के समय चन्द्रमा जिस भी राशि में रहता है। वहीं
वृषभ चन्द्र की भावनाओं की तरह ही चित्त और मन का वही सर्वोच्च बिंदु होता है— अतः इस दिन मन अत्यंत संवेदनशील, शुद्ध और ग्रहणशील हो जाता है।
चन्द्र = मन
शिव = स्थिरता + सौम्यता
प्रभव: चित्त में निर्मलता और शिव भावना का स्थायी विस्तार
इस समय सूर्य में शिव तत्व होता है, जो गहन रहस्यमयी, तांत्रिक और ध्यानात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।
अर्थात — बाहर की दुनिया विरल हो जाती है और अंतर्यात्रा के द्वार खुलते हैं।
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? शिव-तत्त्व का आह्वान
त्रिपुरारी पूर्णिमा पर:
अहंकार का संहार = त्रिपुरासुर-वध का आंतरिक अर्थ
मन, प्राण और बुद्धि — इन तीन ‘पुरों’ का दहन
जब ‘मैं’ मिटता है, तभी शिव प्रकट होते हैं
यह पूर्णिमा ध्यान, मौन, जप और श्वास-प्रवाह में शिवत्व का प्रत्यक्ष अनुभव कराती है।
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? तुलसी-तत्त्व का रहस्य
तुलसी का सुगंधित प्राण-तत्त्व चन्द्र की शुद्ध भाव-शक्ति को संतुलित करता है।
तुलसी का दीपक जलाना:
मन को शांत करता है
सूक्ष्म नाड़ियों को शुद्ध करता है
और चित्त को शिव की चेतना से जोड़ता है
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?️ क्या करें इस दिन
साधना विधि फल
ॐ नमः शिवाय जप कम से कम 108 बार, शांत बैठकर मन की गाँठों का शमन
तुलसी के पास दीपक पूर्व मुख बैठकर 15 मिनट ध्यान चित्त की शुद्धि और प्रेम ऊर्जा
रुद्राभिषेक (यदि संभव) जल + बेलपत्र अंतरात्मा की कठोरता का गलना
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✨ निष्कर्ष
यह पूर्णिमा बाहरी पूजा का नहीं, आंतरिक जागरण का पर्व है।
जब मन चन्द्रवत निर्मल हो, और बुद्धि सूर्यवत प्रकाशमान — तब आत्मा स्वयं ऋषि की भांति शिव का साक्षात्कार करती है।
त्रिपुरारी पूर्णिमा वह क्षण है, जब ब्रह्मांड कहता है — "शिव बनो।"
हरिॐ तत्सत॥