हिंदू धर्म में पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) का अत्यंत विशेष महत्व है। यह हर वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या (सर्वपितृ अमावस्या) तक 16 दिनों तक मनाया जाता है। इस अवधि को हमारे पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है।
पितृ पक्ष मनाने का कारण
1. पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु गरुड़ पुराण में कहा गया है – > “यत्कृतं पितृभक्त्या तु श्राद्धं पितृहिताय च। तेन तृप्ताः पितरः प्रीता यान्ति स्वर्गं सनातनम्॥” (गरुड़ पुराण, पूर्व खंड, अध्याय 5) ? अर्थ: जो श्राद्ध श्रद्धा से पितरों के लिए किया जाता है, उससे वे संतुष्ट होकर स्वर्ग लोक को जाते हैं।
2. पितृ ऋण से मुक्ति मनुस्मृति में कहा गया है – > “ऋषिभ्यः स्वाध्यायकृतं पितृभ्यः श्राद्धकर्मणा। दैवं च यज्ञकर्माभ्यां त्रिभिर् ऋणि भवन्नरः॥” (मनुस्मृति 6/35) ? अर्थ: मनुष्य जन्म से ही ऋषि ऋण, देव ऋण और पितृ ऋण से बंधा होता है। श्राद्ध कर्म से पितृ ऋण की मुक्ति होती है।
3. कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम महाभारत (अनुशासन पर्व) में भी कहा गया है – > “श्राद्धं प्रजापतिः सृष्ट्वा प्रजासन्तानकारणम्। तस्मात् श्राद्धं महत्पुण्यं कर्तव्यमनसूयया॥” ? अर्थ: प्रजापति ने श्राद्ध को उत्पन्न किया ताकि वंश का संतति विस्तार हो सके। इसलिए यह महान पुण्यदायी है।
4. पुण्य और आशीर्वाद की प्राप्ति पद्म पुराण में लिखा है – > “पितृभ्यः क्रियते यत् तु तेन तुष्टा भवन्ति ते। तृप्ताः पितर आत्मानं पुत्रान् रक्षन्ति सर्वदा॥” ? अर्थ: पितरों को प्रसन्न करने के लिए जो श्राद्ध किया जाता है, वे तृप्त होकर अपने वंशजों की रक्षा करते हैं।
5. पितृ दोष की शांति ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध व तर्पण करने से पितृ दोष शांति प्राप्त होती है और परिवार में अन्न-धन, संतान व स्वास्थ्य से संबंधित बाधाएँ दूर होती हैं।
पितृ पक्ष में क्या करें? (Do’s)
प्रतिदिन तिल और जल से तर्पण करें। श्राद्ध व पिंडदान योग्य ब्राह्मण से करवाएँ। अन्न, वस्त्र, गौ, तिल और जल का दान करें। ब्राह्मण, गरीब, गौ सेवा को विशेष महत्व दें। रोज़ अपने पितरों को स्मरण कर आशीर्वाद माँगें।
पितृ पक्ष में क्या न करें? (Don’ts)
शादी, गृह प्रवेश या नए शुभ कार्य न करें। झूठ, अपमान और हिंसा से बचें। माँस, शराब और नशे का सेवन न करें। पेड़-पौधे काटना और नया निर्माण करना वर्जित है।
पितृ पक्ष केवल कर्मकांड नहीं बल्कि श्रद्धा और कृतज्ञता का पर्व है। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि “पितृ तृप्ति के बिना देव तृप्ति नहीं होती।” अतः इस काल में पितरों का स्मरण, श्राद्ध और तर्पण करने से उनके आशीर्वाद से जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है।