बैकुंठ चतुर्दशी : शिव-हरि एकत्व का दिव्य पर्व ✨
बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाने वाला वह पावन दिवस है, जब श्री विष्णु और भगवान शंकर का अद्वितीय एकत्व प्रकट होता है। यह पर्व बताता है कि भक्ति का मार्ग चाहे कोई भी हो, अंतिम लक्ष्य एक ही है — परम अद्वैत चेतना।
पुराणों में कहा गया है कि इस दिन भगवान विष्णु काशी में आकर स्वयं शिवजी की आराधना करते हैं, और बदले में शंभु श्रीहरि के मध्य में प्रतिष्ठित श्रीसुदर्शन को स्वीकार कर लेते हैं। यह दृश्य दर्शाता है कि विष्णु शिव से भिन्न नहीं हैं—
> हरि हर में, हर हरि में।
इस दिन का आध्यात्मिक महत्व
मन में द्वैत घटता है, एकत्व की अनुभूति बढ़ती है।
हृदय में नम्रता और समर्पण का भाव जागृत होता है।
साधक के भीतर अहंकार शिथिल होकर शांति स्थापित होती है।
सरल पूजन विधि
सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
दीप प्रज्वलित कर “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप संयुग्म रूप में करें।
तुलसी और बिल्वपत्र दोनों का संयुक्त अर्पण विशेष फलदायक माना गया है।
संदेश
बैकुंठ चतुर्दशी हमें सिखाती है कि सच्चा धर्म जोड़ता है, तोड़ता नहीं।
शिव और विष्णु की एकता यह स्मरण कराती है कि ईश्वर एक है—रूप अनेक।
शुभ बैकुंठ चतुर्दशी।
आपके जीवन में शांति, सौम्यता और दिव्य ऊर्जा की वृद्धि हो।