।।ग्रहों का विभिन्न नक्षत्रों में होने से फलित प्रभाव।।

2 weeks ago
लेखक: प.नरेश कुमार शर्मा ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का महत्व अत्यंत गूढ़ और गहन है। 27 नक्षत्रों को वेदों में दैवीय शक्तियों के अधिष्ठान के रूप में वर्णित किया गया है। प्रत्येक नक्षत्र का स्वामी अलग ग्रह होता है और हर ग्रह जब किसी विशेष नक्षत्र में स्थित होता है, तो उसका फल भिन्न प्रकार से प्रकट होता है। यही कारण है कि जन्मकुंडली में ग्रह का केवल राशि में होना ही नहीं, बल्कि नक्षत्र में होना भी उतना ही निर्णायक होता है। --- 1. नक्षत्र और उनका स्वामी हर नक्षत्र का एक स्वामी ग्रह होता है। जैसे – अश्विनी, मघा, मूला – स्वामी केतु भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा – स्वामी शुक्र कृत्तिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा – स्वामी सूर्य रोहिणी, हस्त, श्रवणा – स्वामी चंद्र मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा – स्वामी मंगल आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा – स्वामी राहु पुनर्वसु, विशाखा, पुनर्वासु, पूर्वाभाद्रपद – स्वामी गुरु पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद – स्वामी शनि अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती – स्वामी बुध --- 2. ग्रह का नक्षत्र में प्रभाव ग्रह का नक्षत्र में स्थित होना दोहरी परत का प्रभाव उत्पन्न करता है – 1. ग्रह स्वयं जिस नक्षत्र में स्थित है, उसकी मूल प्रकृति ग्रह के फल को प्रभावित करती है। 2. उस नक्षत्र का स्वामी जिस भाव में स्थित है, वहां से विशेष फल निकलता है। --- 3. कुछ उदाहरण सूर्य यदि पुष्य नक्षत्र में हो – चूंकि पुष्य का स्वामी शनि है, सूर्य यहां शनि की प्रकृति से फल देता है। व्यक्ति में अनुशासन, परिश्रम और संघर्ष झलकता है। चंद्रमा यदि रोहिणी नक्षत्र में हो – यह चंद्रमा का प्रिय नक्षत्र है, इसलिए व्यक्ति को कोमल हृदय, सौंदर्य प्रेम और आकर्षण की प्राप्ति होती है। मंगल यदि मृगशिरा नक्षत्र में हो – मंगल यहां चंचल और खोजी स्वभाव का हो जाता है। ऐसे जातक ऊर्जा को नए-नए प्रयोगों में लगाते हैं। गुरु यदि विशाखा नक्षत्र में हो – चूंकि इसका स्वामी गुरु ही है, अतः ऐसे व्यक्ति धार्मिक, दार्शनिक, और समाजोपयोगी कार्यों में आगे रहते हैं। शुक्र यदि स्वाती नक्षत्र में हो – राहु स्वामी होने से शुक्र यहां असामान्य आकर्षण, आधुनिकता और भौतिक विलासिता की ओर प्रवृत्त करता है। --- 4. नक्षत्र स्वामी और दशा ग्रह की दशा का फल भी उसके नक्षत्र स्वामी के अनुसार बदल जाता है। उदाहरण – यदि शनि दशा चल रही हो और शनि रोहिणी नक्षत्र में स्थित हो, तो उस दशा में चंद्रमा का प्रभाव भी प्रबल होगा। इसी प्रकार यदि गुरु दशा चल रही हो और गुरु स्वाती नक्षत्र में स्थित हो, तो उस दशा में राहु की छाया प्रमुख होगी। --- 5. निष्कर्ष ग्रहों का नक्षत्र में होना यह दर्शाता है कि केवल राशि देखकर फलित करना अधूरा है। राशि ग्रह को बाहरी आवरण देती है। नक्षत्र ग्रह की वास्तविक प्रकृति और अंतःस्थ शक्ति को उजागर करता है। अतः किसी भी जन्मकुंडली का सटीक फलादेश तभी संभव है जब ग्रह, राशि और नक्षत्र तीनों का सम्मिलित अध्ययन किया जाए।