शनिश्चरी अमावस्या और ज्योतिष रहस्य
“शनिश्चरी अमावस्या : शनि दोष, पितृ दोष और कालसर्प निवारण का श्रेष्ठ दिन”
शनिश्चरी अमावस्या का ज्योतिषीय महत्व बहुत गहरा माना जाता है, विशेषकर शनि ग्रह और पितृ दोष से जुड़े मामलों में। इसे शनि देव की आराधना और पितरों की शांति का सर्वोत्तम दिन माना जाता है।
ज्योतिषीय महत्व –
1. शनि ग्रह की शांति
अमावस्या तिथि चंद्रमा की अंधकारमयी स्थिति होती है।
यदि यह शनिवार को आती है तो इसे "शनिश्चरी अमावस्या" कहा जाता है।
इस दिन शनि की कृपा पाने और शनि दोष, साढ़ेसाती, ढैय्या तथा शनि की कुप्रभावित स्थिति को शांत करने के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं।
2. पितृ शांति और तर्पण
अमावस्या का संबंध पितरों से होता है।
शनिश्चरी अमावस्या पर पितृ तर्पण, श्राद्ध और दान करने से पितृ दोष का निवारण होता है।
पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वंश में सुख-समृद्धि आती है।
3. कर्म और ऋण मुक्ति का समय
शनि न्याय के देवता हैं और कर्मफलदाता माने जाते हैं।
इस दिन व्रत, दान, गरीबों व जरूरतमंदों की सेवा करने से पुराने कर्मजनित बंधन कम होते हैं।
शनि से जुड़े कर्ज, मुकदमेबाजी और बाधाएँ भी धीरे-धीरे समाप्त होती हैं।
4. कालसर्प और पितृदोष निवारण
अमावस्या पितृ कर्मों से जुड़ी है और शनि पूर्वजों व कर्मों के न्यायाधीश हैं।
शनिश्चरी अमावस्या पर नाग-पूजन, पीपल पूजन और पितृ तर्पण करने से कालसर्प व पितृ दोष के प्रभाव कम होते हैं।
5. तंत्र-मंत्र साधना का दिन
अमावस्या तिथि तांत्रिक साधनाओं के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
शनिश्चरी अमावस्या पर शनि साधना, हनुमान उपासना और दशमहाविद्या साधना करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
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विशेष उपाय (शनिश्चरी अमावस्या पर)
पीपल के वृक्ष की पूजा करके दीपक जलाना।
शनि मंदिर में तेल चढ़ाना और काले तिल, उड़द, लोहा, काली वस्त्र दान करना।
पितरों के लिए तर्पण व श्राद्ध कर्म करना।
हनुमान चालीसा, सुंदरकांड या शनि स्तोत्र का पाठ करना।
? इस दिन किए गए उपाय साधारण दिनों की तुलना में अधिक फलदायी माने जाते हैं।
लेखक: प.नरेश कुमार शर्मा